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15 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति, सुबह से शाम तक है शुभ मुहूर्त

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बीते साल की तरह इस साल भी मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इसका पुण्य काल पूरे दिन रहेगा और इसी दिन मलमास भी समाप्त होगा। गंगा स्नान व दान-पुण्य का सिलसिला सुबह से ही शुरू हो जाएगा।15 जनवरी की सुबह से ही लोग दान पुण्य और संक्रांति की पूजा करना शुरू कर देंगे। यह पर्व खास तौर पर 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस बार मलमास पड़ने के कारण तिथि में परिवर्तन हो गया हैं। पंचाग के अनुसार 14 जनवरी यानि शनिवार को खरमास खत्म हो रहा है और इसी दिन रात्रि 8:21 बजे सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इसी के बाद से मकर संक्रांति शुरू हो जाएगी।लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार हमारे यहां उदयातिथि का महत्व है, इसलिए मकर संक्रांति का पर्व रविवार को मनाया जाएगा।इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक शुभ मुहूर्त रहेगा।नए साल का पहला वैवाहिक लगन 15 जनवरी को होगा। 2023 में जून तक विवाह के कुल 45 मुहूर्त हैं।

मालूम हो कि 16 दिसंबर से 15 जनवरी तक मलमास के चलते सभी शुभ मांगलिक कार्यों पर विराम लगा हुआ है। मलमास की समाप्ति के बाद शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे।

वैवाहिक शुभ मुहूर्त

बनारसी पंचांग के अनुसार

जनवरी: 15, 17, 18, 19, 25, 26, 27, 30, 31

फरवरी: 1, 6, 7, 8, 9, 10, 12, 13, 15, 16, 17, 18, 22, 23, 27, 28

मार्च: 1, 5, 6, 7, 8, 9, 11, 14

मिथिला पंचांग के अनुसार

जनवरी: 18, 19, 22, 23, 25, 26, 27, 39

फरवरी: 1, 6, 8, 10, 15, 16, 17, 22, 24, 27

मार्च: 1, 6, 8, 9, 13

मई: 1, 3, 7, 11, 12, 17, 21, 22, 26, 29, 31

जून: 5, 7, 8, 9, 12, 14, 18, 22, 23, 25, 28

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नहाय-खाय के साथ चैती छठ शुरू, खरना आज

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मुजफ्फरपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। नहाय-खाय के साथ शनिवार से चार दिवसीय चैती छठ का अनुष्ठान शुरू हो गया। इसके लिए बूढ़ी गंडक सहित सरावरों में व्रतियों की भीड़ जुटी। जो नदी स्नान के लिए नहीं जा सके, घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया। फिर अरवा चावल, चना-अरहर की दाल व कद्दू की सब्जी महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया।

वहीं, दिन में गेहूं को धोकर सुखाने के बाद शाम में गेहूं को मिल में भेजा। छठ व्रती रविवार की शाम खीर और रोटी व केला के साथ खरना पूजा करेंगी। इसी के साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। चैती छह का पहला अर्घ्य सोमवार की शाम 5 बजे दिया जाएगा। वहीं सप्तमी तिथि मंगलवार को 600 बजे से सुबह का अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। पंडित जय किशोर मिश्र ने बताया कि चैती छठ ज्यादातर लोग घरों में ही करते हैं। साफ-सफाई नहीं होने से तालाब या नदी तट पर कम लोग जाते हैं।

Source : Hindustan

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नवरात्रि विशेष: देश का वह शक्तिपीठ जहां होती है 1051 दीपों से माता की आरती

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देश में नवरात्रि शुरू हो चुकी है। आज नवरात्रि का पहला दिन है। आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां 1051 दीपों से माता की आरती होती है। माता हरिसिद्धि का मंदिर देश का एकमात्र शक्तिपीठ है जहां 1051 दीपकों से माता की आरती की जाती है।

बता दें कि यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के आसपास के क्षेत्र महाकाल वन में स्थित है। यह 51 शक्ति पीठ में शामिल है। नवरात्रि के अवसर पर देशभर के भक्तजन यहां माता हरिसिद्धी का आशीर्वाद लेने आते है।

श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर की संपूर्ण जानकारी | Harshidhi… –  DHARMWANI.COM

इस मंदिर के पुजारी पंडित रामचंद्र गिरी का कहना है कि माता का दरबार ब्रह्म मुहूर्त में ही खुल जाता है। इसके बाद दूध, दही, शक्कर, जल आदि से पंचामृत पूजन और अभिषेक किया जाता है। माता का जब सोलह श्रृंगार हो जाता है तब कपाट भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिर परिसर में निर्मित 1051 दीप मालिकाएं को आरती के वक्त प्रज्वलित किया जाता है। बता दें कि यहां पर माता की कोहनी गिरी थी, जिसके बाद यहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

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बताया जाता है कि माता हरिसिद्धि सम्राट विक्रमदित्य की आराध्य देवी है। माना जाता है कि विक्रमादित्य मंदिर में माता की पूजा करने आते थे। ऐसा कहते है कि नवरात्रि के मौके पर माता सबको मनवांछित फल देती है।

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कलश स्थापना आज 11 बजे तक, मां शैलपुत्री की होगी पूजा

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नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं।

मां शैलपुत्री को लाल रंग बहुत प्रिय है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल और मीठा पान भेंट करें।

नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।

सभी राशियों के लिए शुभ। मेष और वृश्चिक के लिए विशेष फलदायी।

शैलपुत्री के पूजन से संतान वृद्धि और धन व ऐश्वर्य की शीघ्र प्राप्ति होती है। मां सर्व फलदायी हैं।

भक्त पूजा के समय लाल और गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।

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घटस्थापना मुहूर्त 22 मार्च 2023

● सुबह 623 से 732 के बीच (लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त)

● 930 से 11 बजे के बीच स्थिर लग्न (वृष) का शुभ मुहूर्त रहेगा

( प्रात11 बजे तक अवश्य कलश स्थापना कर लें)

नवरात्र की तिथियां

प्रतिपदा 22 मार्च (मां शैलपुत्री)

द्वितीय 23 मार्च (मां ब्रह्मचारिणी)

तृतीया 24 मार्च (मां चन्द्रघण्टा)

चतुर्थी 25 मार्च (मां कुष्मांडा)

पंचमी 26 मार्च (मां स्कंदमाता)

षष्टी 27 मार्च (मां कात्यायनी)

सप्तमी 28 मार्च (मां कालरात्रि)

अष्टमी 29 मार्च (मां महागौरी)

नवमी 30 मार्च (मां सिद्धिदात्री) और श्रीराम नवमी ( श्रीराम जन्मोत्सव)

कलश स्थापना की विशेष बातें

● कलश ईशान कोण या पूरब-उत्तर दिशा में स्थापित करें

● कलश पर स्वास्तिक बनाएं। मौली बांधें

● कलश पर अष्टभुजी देवी स्वरूप 8 आम के पत्ते लगाएं

● रोली, चावल, सुपारी, लौंग, सिक्का अर्पित करते हुए कलश स्थापित करें।

अखंड ज्योति के नियम

● घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जला सकते हैं।

● घी का दीपक दाहिनी तरफ और तेल का दीपक बाएं तरफ होगा।

● दीपक में एक लौंग का जोड़ा अवश्य अर्पित करें।

● अखंड ज्योति कपूर और लौंग से आरती करते हुए जलाएं।

Source : Hindustan

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