बदलती दुनिया में आज सफलता की नई कहानियां महिलाएं लिख रही हैं। तमाम महिलाओं की मेहनत और संघर्ष ने उनको देश और दुनिया की महिलाओं के लिए मिसाल के तौर पर स्थापित किया है। ऐसी ही कहानी है दिल्ली की युवा फिल्म-टीवी निर्माता-निर्देशिका अपूर्वा बजाज की। अपूर्वा की मेहनत और ज़िद ने उनको मुंबई की टीवी-फिल्म इंडस्ट्री में एक खास मुकाम दिलाया है, जिसके लिए उन्हें सरस्वतीबाई दादासाहेब फाल्के-2019 अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा है।

अपूर्वा को इंडस्ट्री में दाखिल हुए ज़्यादा साल नहीं हुए हैं। लेकिन अपने काम, लगन और मेहनत से उन्होंने साबित कर दिया है कि सफलता का फार्मूला यही है। अपूर्वा की सफलता और उपलब्धि का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि उनके अलावा ये अवॉर्ड ज़ीनत अमान, सुलोचना, सलमा आगा, गुनीत मोंगा, सायराबानो आरजे मलिश्का और सिनेमेटोग्राफर कीको को दिया जा रहा है।

अपूर्वा दिल्ली की रहने वाली हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद मुंबई से फिल्म, कैमरा और लाइटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। मुंबई में ही रहकर कई नामचीन डायरेक्टर्स को असिस्ट किया। उसके बाद सआदत हसन मंटो के जीवन पर एक शॉर्ट फिल्म बनाई जिसका नाम था ‘खिज़ान’। इस फिल्म को बेस्ट एक्सपेरिमेंटल सिनेमा अवॉर्ड-2011 मिला। लेकिन अपूर्वा यहीं नहीं रुकने वाली थी, उन्होंने तय किया कि वो मर्ज़ी का काम करने के लिए प्रोड्यूसर बनेंगी। उन्होंने चल गुरू हो जा शुरू फिल्म प्रोड्यूस की। लेकिन उनके करियर का माइलस्टोन बना स्टार भारत का लॉंचिंग म्यूज़िकल रियलिटी शो ओम शांति ओम। ये दुनिया का पहला भक्ति संगीत प्रतिस्पर्धा कार्यक्रम था। कई शॉर्ट फिल्म्स प्रोड्यूस करने वाली अपूर्वा दो मेन स्ट्रीम बॉलीवुड फिल्में प्रोड्यूस कर रही हैं। जल्द ही ये फिल्में दर्शकों के सामने होंगी।

इस अवॉर्ड के बारे में अपूर्वा कहती हैं कि इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाना उनके लिए बहुत गर्व की बात है। उसकी वजह है कि भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के की पत्नी सरस्वतीबाई फिल्म इंडस्ट्री की पहली निर्देशिका, पहली लेखिका और पहली प्रोडूसर थी। वह दादा साहेब फाल्के के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली। फिल्म इंडस्ट्री में दादा साहेब के साथ-साथ सरस्वतीबाई के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

अपूर्वा सिर्फ एक महिला के तौर पर खुद ही आगे नहीं बढ़ रहीं, बल्कि उनकी फिल्मों में तकनीकी स्टाफ से लेकर हर ज़िम्मेदारी पर ज़्यादातर महिलाएं होती हैं। उनका कहना है कि उनके यहां उस जगह भी महिलाएं हैं जो पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र माने जाते हैं।

अपूर्वा जैसी महिलाएं, दुनिया बदल रही हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि अपूर्वा ऐसे ही मिसाल बन कर, तमाम और औरतों की ज़िंदगी बदलेंगी।

I just find myself happy with the simple things. Appreciating the blessings God gave me.

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