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रामनवमी: जिस चरित्र से पूरा मानव समाज गरिमा के साथ प्रकट होता है, वही राम हैं

राम के बारे में ठीक ही कहा गया है कि राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बारे में इतना साहित्य रचा गया है कि शायद ही किसी नायक के इतने चरित्र गढ़े गए हों. भारत के उत्तर-दक्षिण-पूर्व और पश्चिम के देशों में भी राम कथा किसी न किसी रूप में मौजूद है. पश्चिमोत्तर में कांधार देश (आज का सेंट्रल एशिया) तो पूर्व में बर्मा, स्याम, थाईलैंड और इंडोनेशिया तक राम कथा के स्रोत मिलते हैं. राम भले वैष्णव हिन्दुओं के लिए विष्णु के अवतार हों, लेकिन जैन, सिख और बौद्ध धर्मों में भी राम-कथा है.
राम को हर जगह अयोध्या का राजा बताया गया है, बस बाकी चरित्रों में भिन्नता है. राम आदर्श, धीरोदात्त नायक हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनके अन्दर सागर जैसी गम्भीरता है और उनके चरित्र में पहाड़ सदृश ऊंचाई. वे समाज में एक ऐसे चरित्र को प्रतिस्थापित करते हैं, जिस चरित्र से पूरा मानव समाज गरिमा के साथ प्रकट होता है. उनमें अनुशासन है, वे मां-बाप और गुरु के आज्ञाकारी हैं. लोभ तो उनमें छू तक नहीं गया है. ऐसे राम हमारे भारतीय समाज के नायक तो होंगे ही. तभी तो मशहूर शायर इकबाल ने भी उन्हें इमाम-ए-हिन्द बताया है.
रामकथा एक, वर्णन अनेक
राम एक ऐसे नायक हैं, जो धर्म, जाति और संकीर्णता के दायरे से मुक्त हैं. वे सिर्फ और सिर्फ मानवीय आदर्श के मानवीकृत रूप हैं. आदि कवि वाल्मीकि से लेकर मध्यकालीन कवि तुलसी तक ने उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है. लेकिन एक आदर्श नायक के सारे स्वरूप उनमें निहित हैं. हर कवि ने राम को अपनी नज़र से देखा और उनके अलौकिक गुणों की व्याख्या अपनी संवेदना से की. मूल आधार वाल्मीकि रामायण है, लेकिन क्षेपक अलग-अलग हैं. जैसे तमिल के महान कवि कंबन ने अपने अंदाज़ में गाया है तो असम के माधव कन्दली का अंदाज़ अलग है. उन्होंने 14वीं शताब्दी में सप्तकांड रामायण लिखी थी. लेकिन वहां लोकप्रिय हुई कृतिवास की बांग्ला में लिखी गई रामायण. कहीं राम स्वर्ण-मृग की खोज में नहीं जाते हैं तो कहीं वे सीता की अग्नि परीक्षा और सीता वनवास से विरत रहते हैं. जितने कवि उतने ही अंदाज़, किन्तु राम कथा एक. यह विविधता ही राम कथा को और मनोहारी तथा राम के चरित्र को और उदात्त बनाती है.
किष्किन्धा में अकेले पड़े राम लक्ष्मण
एक प्रसंग का वर्णन कंबन की तमिल राम कथा के सहारे और तुलसी का आधार लेकर सुप्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव ने किया है. वानर राज बालि के वध का प्रसंग तो अद्भुत है. वे लिखते हैं- बालि घायल पड़ा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि सुग्रीव उसका छोटा भाई कभी उसे परास्त भी कर सकता है. तभी उसने अर्ध चेतन अवस्था में ही राम और लक्ष्मण को वृक्षों के झुरमुट से बाहर आते देखा. वह फौरन समझ गया कि उसकी यह हालत सुग्रीव की गदा से नहीं बल्कि इन दो मनुष्यों के तीरों से हुई है. उसने कातर दृष्टि सांवले राम की तरफ डाली और बोला-
धर्म हेतु अवतरेहु गुसाईं, मारेहु मोहि ब्याधि की नाईं!
मैं बैरी सुग्रीव पियारा, कारन कवन नाथ मोहिं मारा!!
राम निरुत्तर थे. क्या बोलते. दूसरे का देश और वह प्रजा जो राम से अपरिचित थी. यहां सिर्फ हनुमान, अंगद और सुग्रीव के अलावा बाकी सब राम को नहीं जानते थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या जवाब दे. अगर अपने राजा की यह स्थिति देखकर प्रजा भड़क गई तो, अथवा पट्ट महारानी तारा के विलाप से उनका पुत्र अंगद और देवर सुग्रीव विचलित हो गए तो राम का अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ मारा जाना तय था. भीड़ पर अंकुश पाना आसान नहीं होता. तारा की दहाड़ और अंगद का बिलखना खुद राम को भी विचलित कर रहा था. बड़ी कसमकश की घड़ी थी. तब ही अचानक राम की चेतना जागी और वे बोले-
अनुज वधू, भगिनी, सुत-नारी, सुन सठ कन्या सम ये चारी!
इन्हें कुदृष्टि बिलोकहि जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई!!
राम ने अपनी बुद्घि चातुर्य का अद्भुत प्रदर्शन किया. उन्होंने बड़ी सफाई से एक क्षण में ही बालि के संपूर्ण आचरण को संदेहास्पद बना दिया. अब बालि अपराध बोध से ग्रसित था. और उसकी प्रजा के पास इसका कोई जवाब नहीं था कि वह बालि के आचरण को सही कैसे ठहराए. यह सच था कि वानर राज बालि ने अपने छोटे भाई को लात मारकर महल से निकाल दिया था और उसकी पत्नी को अपने महल में दाखिल करवा लिया था. भले यह किष्किंधा राज्य वानरों का था पर दूसरे वह भी छोटे भाई की पत्नी को छीन लेना उचित कहां से था. राम ने एक मर्यादा रखी कि छोटे भाई की पत्नी, बहन और पुत्रवधू अपनी स्वयं की कन्या के समान है. और इन चारों पर बुरी नजर रखने वाले को मौत के घाट उतारना गलत नहीं है.
देश को हड़पना राम की नीति नहीं थी
तत्क्षण दृश्य बदल गया और बालि को अपने अपराध का भान होते ही वह स्वयं ही अपराध बोध से ग्रस्त हो गया और अपनी इस भूल का अहसास उसे हुआ तथा उसने प्राण त्याग दिए. राम ने एक मिनट की भी देरी नहीं की और सुग्रीव को किष्किंधा का नया राजा घोषित कर दिया तथा देवी तारा को दुख न हो इसलिए उनके पुत्र अंगद को युवराज.
इससे जनता में एक संदेश गया कि ये दोनों मनुष्य भले ही हमारे राजा के हंता हों पर ये राज्य के भूखे नहीं हैं और देखो इन्होंने राज्य खुद न हड़प कर हमारे राजा के छोटे भाई सुग्रीव को सौंपा तथा राजा बालि के पुत्र अंगद को युवराज बनाया. राम चाहते तो राजा विहीन किष्किंधा को हड़प सकते थे. क्योंकि सुग्रीव तो अपने भाई के साथ विश्वासघात करने के कारण वैसे ही अपराध के बोध से परेशान होते और विरोध भी न कर पाते. मगर राम ने एक मर्यादा को स्थापित किया.
यही राम की विशेषता थी जिसके कारण आज भी राम हमारे रोम-रोम में समा गए हैं. राम के बिना क्या हिंदू माइथोलॉजी, हिंदू समझदारी और हिंदू समाज व संस्कृति की कल्पना की जा सकती है? राम इसीलिए तो पूज्य हैं, आराध्य हैं और समाज की मर्यादा को स्थापित करने वाले हैं. वे किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को सौंपते हैं और लंका नरेश रावण का युद्घ में वध करने के बाद वहां का राज्य रावण के छोटे भाई विभीषण को.
लोभ से परे हैं राम
राम को राज्य का लोभ नहीं है. वे तो स्वयं अपना ही राज्य अपनी सौतेली मां के आदेश पर यूं त्याग देते हैं जैसे कोई थका-मांदा पथिक किसी वृक्ष के नीचे विश्राम करने के बाद आगे की यात्रा के लिए निकल पड़ता है- राजिवलोचन राम चले, तजि बाप को राजु बटाउ की नाईं. राम आदर्श हैं और वे हर समय समाज के समक्ष एक मर्यादा उपस्थित करते हैं.
राम एक पत्नीव्रती हैं पर पत्नी से उनका प्रेम अशरीर अधिक है बजाय प्रेम के स्थूल स्वरूप के. वे पत्नी को प्रेम भी करते हैं मगर समाज जब उनसे जवाब मांगता है तो वे पत्नी का त्याग भी करते हैं. उसी पत्नी के लिए जिसे पाने हेतु वे उस समय के सबसे शक्तिशाली राजा रावण का वध करते हैं और उसकी विशाल सेना का नाश करते हैं.
मगर पत्नी के प्रति मोह से वे दूर हैं और अयोध्या के एक सामान्य-से व्यक्ति के आक्षेप पर वे सीता को पुनः वनवास पर भेज देते हैं. उसी सीता को जिसने उस समय अपने पति का साथ दिया जब राम को 14 साल के वनवास का आदेश मिला पर जब सीता को जंगल में भेजते हैं तो सीता अकेली हैं और गर्भवती हैं. सोचिए कैसा रहा होगा वह व्यक्ति जो समाज में मर्यादा बनाए रखने के लिए अपने प्यार, मोह और निष्ठा सब का त्याग करता है. राम के इसी आचरण को सुनकर लगता है कि राम मनुष्य नहीं भगवान ही रहे होंगे.
विविधता में एकता लाते हैं राम
राम हमारे मिथ के सबसे बड़े प्रतीक हैं. वे वैष्णव हैं, साक्षात विष्णु के अवतार हैं. वे उस समय की पाबंदी तोड़ते हुए खुद शिव की आराधना करते हैं और रामेश्वरम लिंगम की पूजा के लिए उस समय के सबसे बड़े शैव विद्वान दशानन रावण को आमंत्रित करते हैं. उन्हें पता है कि उनकी शिव अर्चना बिना दशानन रावण को पुरोहित बनाए पूरी नहीं होगी इसलिए राम रावण को बुलाते हैं. रावण आता है और राम को लंका युद्ध जीतने का आशिर्वाद देता है.
राम द्वेष नहीं चाहते. वे सबके प्रति उदार हैं यहां तक कि उस सौतेली मां के प्रति भी जो उनके राज्याभिषेक की पूर्व संध्या पर ही उन्हें 14 साल के वनवास पर भेज देती है और अयोध्या की गद्दी अपने पुत्र भरत के लिए आरक्षित कर लेती है. लेकिन राम अपनी इस मां कैकेयी के प्रति जरा भी निष्ठुर नहीं होते और खुद भरत को कहते हैं कि भरत माता कैकेयी को कड़वी बात न कहना. राम के विविध चरित्र हैं और वे सारे चरित्र कहीं न कहीं मर्यादा को स्थापित करने वाले हैं. संस्कृतियों के बीच समरसता लाने वाले हैं और विविधता में एकता लाने वाले हैं.
शरणागत की रक्षा
विभीषण राम की शरण में आए हैं, मंथन चल रहा है कि इन पर भरोसा किया जाए या नहीं. सुग्रीव भी तय नहीं कर पा रहे हैं न जामवंत. कई वानर वीर तो विभीषण को साथ लेने के घोर विरोधी हैं, उनका कहना है कि राक्षसों को कोई भरोसा नहीं. क्या पता रावण ने कोई भेदिया भेजा हो. राम को विभीषण की बातों से सच्चाई तो झलकती है, लेकिन राम अपनी ही राय थोपना नहीं चाहते.
वे चुप बैठे सब को सुन रहे हैं. सिर्फ बालि का पुत्र अंगद ही इस राय का है कि विभीषण पर भरोसा किया जाए. तब राम ने हनुमान की ओर देखा. हनुमान अत्यंत विनम्र स्वर में बोले- प्रभु आप हमसे क्यों अभिप्राय मांगते हैं? स्वयं गुरु वृहस्पति भी आपसे अधिक समझदार नहीं हो सकते. लेकिन मेरा मानना है कि विभीषण को अपने पक्ष में शामिल करने में कोई डर नहीं है. क्योंकि यदि वह हमारा अहित करना चाहता तो छिपकर आता, इस प्रकार खुल्लमखुल्ला न आता.
हमारे मित्र कहते हैं कि शत्रु पक्ष से जो इस प्रकार अचानक हमारे पास आता है, उस पर भरोसा कैसे किया जाए! किन्तु यदि कोई अपने भाई के दुर्गुणों को देखकर उसे चाहना छोड़ दे तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है. आपकी महिमा से विभीषण प्रभावित हो, तो इसमें आश्चर्य कैसा! परिस्थितियों को देखते हुए मुझे विभीषण पर किसी प्रकार की शंका नहीं होती. अब राम चाहते तो विभीषण के बारे में अपना फैसला सुना देते, लेकिन उन्होंने अपने समस्त सहयोगियों की राय ली. यही उनकी महानता है और सबकी राय को ग्रहण करने की क्षमता. वे वानर वीरों को भी अपने बराबर का सम्मान देते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Source : TV9
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साल का पहला चंद्र ग्रहण आज, यहां जानें इससे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें

साल का पहला चंद्र ग्रहण आज है. आज सुबह 07 बजकर 58 मिनट पर चंद्र ग्रहण प्रारंभ हो जाएगा. इस साल का पहला चंद्र ग्रहण हिंदू कैलेंडर की तिथि वैशाख पूर्णिमा को लगा है. पूर्णिमा तिथि 15 मई को दोपहर 12:45 बजे से शुरु हुई थी, जो आज 16 मई सोमवार को सुबह 09:43 बजे खत्म होगी. आज वैशाख पूर्णिमा व्रत है और चंद्र देव पर ग्रहण भी. पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और चंद्रमा की पूजा की जाती है. आज चंद्र ग्रहण के समापन के बाद आप स्नान आदि से निवृत होकर शाम को चंद्रमा की पूजा करते हैं, तो चंद्र दोष दूर हो सकता है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट बता रहे हैं चंद्र ग्रहण का समय, सूतक काल, स्थान और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें.
साल 2022 का पहला चंद्र ग्रहण
आज का चंद्र ग्रहण सुबह 07 बजकर 58 मिनट पर लग रहा है और यह 11 बजकर 25 मिनट पर खत्म हो जाएगा. चंद्र ग्रहण की कुल अवधि 03 घंटे 27 मिनट की है. 03 घंटे 27 मिनट तक चंद्रमा पर राहु और केतु की बुरी दृष्टि रहेगी. उसके बाद ग्रहण का मोक्ष हो जाएगा.
चंद्र ग्रहण का सूतक काल
चंद्र ग्रहण का सूतक काल प्रारंभ से 09 घंटे पूर्व प्रारंभ हो जाता है और इसका समापन ग्रहण के खत्म होने के साथ होता है, लेकिन यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका सूतक काल नहीं होगा.
इन जगहों पर दिखेगा चंद्र ग्रहण
साल का पहला चंद्र ग्रहण उत्तर-दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप, अटलांटिक महासागर, प्रशांत महासागर, अंटार्कटिका आदि क्षेत्रों में दिखाई देगा.
चंद्र ग्रहण में ध्यान रखें ये बातें
चंद्र ग्रहण में भोजन न करें और न ही भोजन पकाएं. इस दौरान सोना भी मना होता है. इस समय में भगवान की भक्ति करें. गर्भवती महिलाएं भी विशेष ध्यान रखें. भोजन बना हुआ है, तो उसमें में गंगाजल और तुलसी की पत्ती डाल दें, ताकि वह शुद्ध हो जाए. ग्रहण खत्म होने पर स्नान करके साफ कपड़े पहन लें. फिर पूजा पाठ करें.
चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं का दान
आज का चंद्र ग्रहण वैशाख पूर्णिमा व्रत के दिन लगा है. ऐसे में आप पूजा के समय चंद्र देव के बीज मंत्र ॐ सों सोमाय नम: का जप करें. उसके बाद चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं जैसे मोती, सफेद कपड़ा, चावल, दही, चीनी, सफेद फूल आदि का दान करें. ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष दूर होता है.
चंद्र ग्रहण 2022 राशियों पर प्रभाव
मेष: स्त्री को कष्ट
वृष: सुख
मिथुन: मानसिक व शरीर रोग की चिन्ता
कर्क: संतान कष्ट, अवसाद की स्थिति
सिंह: अप्राप्त लक्ष्मी की प्राप्ति
कन्या: धन-क्षति
तुला: दुर्घटना का प्रबल योग
वृश्चिक: मानहानि
धनु: अप्रत्याशित लाभ
मकर: सुख
कुंभ: स्त्री कष्ट, अपयश
मीन: मृत्युतुल्य पीड़ा
ग्रहण के अनिष्ट फल से बचने के लिए दान
कांसे या फूल के पात्र में काला तिल, सफ़ेद वस्त्र, दही, मिश्री, चांदी का चन्द्रमा दान करके दरिद्रनारायण को दे दें.
Source : News18
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खुल गए केदारनाथ धाम के कपाट, एक दिन में 12 हजार श्रद्धालु कर सकेंगे दर्शन

रुद्रप्रयाग. हर हर महादेव के नारों से पूरी केदारनगरी उस समय गूंज उठी, जब 6 मई की सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर बाबा केदार धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए. इस मौके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौजूद थे और उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर भी केदार धाम खुलने की सूचना साझा की. धाम खुलने के बाद से ही परंपरा के अनुसार धाम में पूजा अर्चना का सिलसिला शुरू हुआ. इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु केदार धाम पहुंचे.
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— Utsav App : Devotion & Festivals (@utsav_app) May 5, 2022
केदारनाथ धाम में हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु देश और विदेश से भी पहुंच चुके हैं. बाबा के कपाट खुलने से पहले ही ठंड के बावजूद गुरुवार देर रात से ही केदार मन्दिर में भीड़ देखी गई. सुबह सरस्वती नदी तक भक्तो की भीड़ लगी देखी गई. बाबा केदार के दर्शन के लिए भक्तों की भारी उमड़ी और सेल्फी व फोटो लेने की होड़ भी लोगों में देखी गई. कई लोग अपने परिजनों को फोन के ज़रिये बाबा के दर्शन करवाते देखे गए.
डोली पहुंचने के बाद से ही धाम हुआ भक्तिमय
इससे पहले गुरुवार को बाबा की चलविग्रह उत्सव डोली बाबा केदारनाथ धाम पहुंची. हजारों श्रद्धालुओं और बमबम भोलेनाथ के जयकारों के साथ डोली धाम में पहुंची. इस डोली को शुक्रवार सुबह बाबा के कपाट खुलने के बाद मन्दिर के अंदर विराजमान किए जाने की परंपरा शुरू हुई. रात भर डोली मन्दिर के भंडार में विश्राम के लिए रही और वहीं डोली के साथ हज़ारों की तादाद में श्रद्धालुओं में उत्साह देखने को मिला.
Source : News18
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जयंती: भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम, राम से बने परशुराम

परशुराम जी का प्रारम्भिक नाम ‘राम’ था, जो कालांतर में महादेव से परशु प्राप्त होने के बाद परशुराम हो गया।… उनका समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से भरा हुआ है।
सतयुग और त्रेता के संधिकाल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र व प्रदोष काल में महान शिव भक्त भृगुकुल शिरोमणि महर्षि परशुराम जी का अवतरण हुआ था। समाज को शास्त्र और शस्त्र के समन्वय का अनूठा सूत्र देने वाले भगवान परशुराम ऋषियों के ओज और क्षत्रियों के तेज दोनों का अद्भुत संगम माने जाते हैं। कारण कि उनके माता-पिता, दोनों ही विलक्षण सिद्धियों से सम्पन्न थे। जहां उनके ब्राह्मण पिता जमदग्नि को अग्नि तत्व पर नियंत्रण पाने की सिद्धि हासिल थी, वहीं क्षत्रिय कुल में जन्मीं मां रेणुका को जलतत्व पर नियंत्रण पाने का वरदान महर्षि अगत्स्य से मिला था। मां-पिता के इन दिव्य गुणों के साथ जन्मे परशुराम जी का प्रारम्भिक नाम ‘राम’ था, जो कालांतर में महादेव से परशु प्राप्त होने के बाद परशुराम हो गया।
परशुराम जी की गणना महान पितृभक्तों में होती है। उनका समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से भरा हुआ है। वे न सिर्फ समस्त दिव्यास्त्रों के संचालन में पारंगत थे, बल्कि योग, वेद, नीति तथा तंत्र कर्म में भी निष्णात थे। अपने समय के शस्त्रविद्या के महानतम गुरु परशुराम ने ही द्वापर युग में भीष्म, द्रोणाचार्य व कर्ण को भी युद्धविद्या का महारथी बनाया था। प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट ‘कलरीपायट्टु’ व ‘वदक्कन कलारी’ के जनक भी वे ही माने जाते हैं। यही नहीं, जैसे देवनदी गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है, वैसे ही ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को धरती पर लाने का श्रेय परशुराम जी को जाता है। पौराणिक उद्धरणों के अनुसार केरल, कन्याकुमारी व रामेश्वरम जैसे दिव्य तीर्थों की स्थापना भगवान परशुराम ने ही की थी।
कहा जाता है कि उन दिनों राजमद में मदांध महिष्मती के हैहयवंशीय क्षत्रिय शासक कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन के क्रूर अत्याचारों से चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी। शक्ति के मद में चूर सहस्त्रार्जुन एक दिन ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आ पहुंचा। ऋषि ने गोमाता कामधेनु की कृपा से अपने राजा का सेना समेत भव्य स्वागत किया। यह देख कार्तवीर्य ललचा गया और कामधेनु मांग बैठा। ऋषि जमदग्नि के इनकार से कार्तवीर्य ने क्रोध में भरकर आश्रम पर धावा बोलकर उसे पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया तथा जमदग्नि पर हमला बोलकर उन्हें भी मार डाला। जब इसका पता परशुराम जी को चला तो उनके क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने समूची पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं के संहार की शपथ उठा ली और महिष्मती पर धावा बोलकर अपने परशु से कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन को उसके समूचे कुल समेत मृत्युलोक पहुंचा दिया।
अक्षय तृतीया को जन्म लेने के कारण उनकी शस्त्र शक्ति भी अक्षय थी और शास्त्र-संपदा भी। उनका परशु अपरिमित शस्त्र-शक्ति का प्रतीक था, जो उनको भगवान शंकर ने शस्त्र विद्या की परीक्षा में सफल होने पर पारितोषिक रूप में प्रदान किया था। जहां ‘राम’ मर्यादा व लोकनिष्ठा का पर्याय माने जाते हैं, वहीं परशु समेत राम ‘परशुराम’अनीति विमोचक शस्त्रधारी। पूनम नेगी
Source : Hindustan
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