जब बेलसंड में प्रो. दिग्विजय प्रताप सिंह से चुनाव हार गए थे प्रो. रघुवंश प्रसाद सिंह बिहार विधानसभा चुनाव 1990 में सीतामढ़ी की बेलसंड सीट पर जनता दल उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह को हराने वाले पूर्व कांग्रेस विधायक दिग्विजय प्रताप सिंह बताते हैं कि वे वोटर की नब्ज पकड़ लेते थे। उनमें जनता से कनेक्ट करने का राजनीतिक कौशल था। रघुवंश प्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए दिग्वजिय प्रताप सिंह ने कहा कि वे एक ईमानदार राजनेता थे। उन्होंने कई रोचक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि रघुवंश बाबू से ही राजनीतिक कौशल सीखकर उन्हें शिकस्त देने में सफलता मिली थी।

दिग्विजय प्रताप सिंह ने बताया कि बेलसंड सीट पर 1985 के चुनाव में वे कांग्रेस उम्मीदवार थे। हालांकि वे लोकदल उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह से चुनाव हार गए, परन्तु उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। उन दिनों गाड़ी से अधिक पैदल पगडंडियों पर चलकर जन संपर्क करते थे। इस दौरान कई बार एक ही दरवाजे पर प्रतिद्वंद्वी रघुवंश बाबू के साथ बैठने और खाने का मौका मिलता था। वे लोगों को गंवई भाषा से आत्मीयता का स्पर्श करते हुए बोलते थे।

कय छीमी दुहई ले

रघुवंश बाबू किसान के दरवाजे पर गाय की थान देखते हुए पूछ बैठते- कय छीमी दुहई ले? केतना दूध हो जाइय?‌ किसान अपनी गाय की तारीफ करते हुए गदगद हो जाता। वे चउके-मउके बैठकर कहीं भी खाने के लिए बैठ जाते। चलते वक्त मेजबान को सुनाते-जेबी में पइसा न हए। मेजबान तुरंत एक-सवा सौ रुपये देकर विदा करता। इस शैली से वे आत्मीयता बटोरते थे। दिग्वजिय प्रताप सिंह बताते हैं कि स्थानीय जमींदार होने की वजह से वे न तो खाना मांग सकते थे और न पैसे। उन्होंने अगले चुनाव में इसकी काट निकाली। हर चुनावी मंच में दिग्विजय प्रताप सिंह लोगों को यह सुनाते कि चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने कहां-कहां कितनी जमीन बेची है। इससे वे सहानुभूति बटोरने में सफल रहे।

1990 में चलाया ब्रह्मास्त्र

दिग्वजिय प्रताप सिंह 1990 में फिर कांग्रेस उम्मीदवार बने। उन्होंने जनता दल उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ ब्रह्मास्त्र चलाया। गाड़ी से उतरते ही बच्चों में टॉफी बांटते हुए खुद नारे लगवाते- जन-जन से आयी आवाज, छोड़ो बेलसंड, जाओ महनार। यह नारा बच्चों से युवाओं एवं बुजुर्गों की जुबान पर पहुंच गया। रघुवंश बाबू महनार के मूल निवासी थे। स्थानीय बनाम बाहरी के नारे पर रघुवंश बाबू हार गए।

बाबरी विध्वंस से तस्वीर बदली

दिग्विजय प्रताप सिंह कहते हैं कि बाबरी विध्वंस के कारण विधानसभा चुनाव 1995 में राजनीतिक तस्वीर बदल गई। अगड़ा-पिछड़ा का भी ध्रुवीकरण हुआ। वे रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ फिर कांग्रेस उम्मीदवार थे, परन्तु बुरी तरह चुनाव हार गए। बेलसंड से चुनाव जीतने के एक साल बाद वे वैशाली से सांसद निर्वाचित हुए और राष्ट्रीय राजनीति में पैर जमाने में सफल रहे।

Source : Bibhesh Trivedi – Deputy News Editor, Hindustan

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