देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक रतन टाटा को 84 साल की उम्र में मुंबई की एचएसएनसी यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया है। इस मौके पर उनके साथ महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और एचएसएनसी विश्वविद्यालय के प्रोवोस्ट डॉ. निरंजन हीरानंदानी भी मौजूद रहे। ये इस यूनिवर्सिटी का पहला दीक्षांत समारोह था जहां रतन टाटा को उनके किए गए कार्यों के लिए सम्मानित करते हुए ये डिग्री दी गई। ये कोई पहला मौका नहीं है जब रतन टाटा को किसी संस्थान या विश्वविद्यालय ने डिग्री देकर सम्मानित किया हो। इसके पहले अभी हाल में यूके की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने भी रतन टाटा को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था।

Maharashtra: HSNC University awards Honorary Doctorate to Ratan Tata

मौजूदा समय में देश में कई उद्योगपतियों के नाम चर्चा में रहते हैं लेकिन जैसे ही रतन टाटा का नाम आता है तो हर कोई उन्हें बहुत ही सम्मानित निगाहों से देखता है। रतन टाटा ने अपनी मेहनत के दम पर टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। रतन टाटा ने साल 1991 से लेकर साल 2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष के तौर पर काम किया। दिसंबर 2012 में उन्होंने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया। हालांकि अभी भी वो टाटा समूह चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। आपको बता दें कि टाटा संस में 100 से ज्यादा कंपनियां काम करती हैं जिनमें सुई से लेकर हवाई जहाज के संचालन तक का काम होता है। आइए आपको बताते हैं उनके जीवन के सफर, उनके सपनों के बारे में

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आर्किटेक्ट बनने की थी तमन्ना लेकिन पिता …

रतन टाटा ने एक संगोष्ठी के दौरान बताया था कि बचपन में उनकी आर्किटेक्ट बनने की तमन्ना थी लेकिन उन्होंने अपने पिता नवल टाटा का मान रखने के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर साल 1937 में मुंबई में हुआ था। संगोष्ठी में अपने छात्र जीवन के बारे में चर्चा करते हुए रतन टाटा ने बताया था कि साल 1959 में उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की उसके बाद वो आर्किटेक्चर के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहते थे।

साल 1961 में टाटा से जुड़े और 1991 में बने उत्तराधिकारी

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रतन टाटा ने इंटर्नशिप की और साल 1961 में वो इंटर्नशिप के टाटा समूह में शामिल हुए। करियर की शुरुआत में रतन टाटा स्टील फ्लोर पर लाइमस्टोन को हटाने और भट्टी को ऑपरेट करने का काम किया करते थे। रतन टाटा ने लगभग 30 सालों तक कई अहम पदों पर रहते हुए टाटा ग्रुप को आगे बढ़ाया और साल 1991 में वो टाटा समूह के अध्यक्ष बने।

समूह अध्यक्ष बनने पर हुआ था विरोध

साल 1991 में जेआरडी टाटा ने टाटा संस के चेयरमैन का पद छोड़ दिया था और रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। रतन टाटा के पद संभालते ही कंपनी में उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद जब वो अध्यक्ष बने तो उन्हें कई कंपनियों के प्रमुखों के विरोध का सामना करना पड़ा। विरोध करने वाले लोग कई दशकों से टाटा ग्रुप से जुड़े थे और बहुत प्रभावी थे। रतन टाटा ने ऐसे लोगों से निपटने के लिए रिटायरमेंट की उम्र निर्धारित की और उन्हें पदों से हटाना शुरू किया।

फोर्ड ने किया था टाटा को अपमानित टाटा ने ऐसे लिया था बदला

टाटा कंपनी की गाड़ियों का कारोबार था और साल 1998 में टाटा ने इंडिका कार लॉन्च की, ये टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था। टाटा इंडिका फ्लॉप हो गई है और टाटा को इसमें काफी नुकसान उठाना पड़ा। लोगों के सुझाव पर टाटा इस कार कंपनी को बेचने के उद्देश्य से अमेरिका की फोर्ड कंपनी पहुंचे जहां उनकी फोर्ड कंपनी के अधिकारियों के कई घंटे बैठक चली। इस बैठक में फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया और कहा जब तुम्हें कार बनानी ही नहीं आती तो तुमने इतना पैसा कार कंपनी पर क्यों लगा दिया? इसके बाद रतन टाटा ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया था। फोर्ड ने कहा था, “हम ये कंपनी खरीदकर तुमपर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं।”

साल 2008 में टाटा ने दिया फोर्ड को जवाब

रतन टाटा ने फोर्ड के साथ वो डील कैंसिल कर दी और वापस भारत आकर पूरा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगा दिया। उन्होंने डील छोड़ी और अपनी टीम के साथ वापस लौट आए, वहां उन्होंने अपना पूरा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगा दिया। सालों की मेहनत के बाद उन्होंने टाटा इंडिका को फिर से लांच किया और इस बार कंपनी ने जबरदस्त मुनाफा दिया। उधर फोर्ड कंपनी इस बीच जगुआर और लैंड रोवर के फ्लॉप होने की वजह से मार्केट में औंधे मुंह गिर पड़ी थी जिसकी वजह से कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गयी थी। साल 2008 में टाटा ने दोनों कंपनियों को खरीदने का प्रस्ताव फोर्ड के पास भेजा जिसे फोर्ड ने तुरंत ही स्वीकार कर लिया और कहा,”आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं।”

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जानिए रतन टाटा की बड़ी उपलब्धियां

रतन टाटा ने अपने कार्यकाल में टाटा को नई उंचाइयों तक पहुंचाया उन्होंने अपने 21 सालों के कार्यकाल में कंपनी की इनकम को 40 गुना तक बढ़ा दिया। रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष का पद संभालते ही टाटा मोटर्स के साथ जगुआर लैंड रोवर और टाटा स्टील के साथ कई कंपनियां खरीद लीं जिसके बाद टाटा ग्रुप ने देश के एक बड़े ब्रांड से उभरकर एक वैश्विक बिजनेश में अपनी एंट्री की। टाटा ग्रुप का 65 फीसदी रेवेन्यू लगभग 100 देशों में फैले व्यवसाय से आने लगा। साल 2000 में भारत सरकार ने रतन टाटा को पद्म भूषण और साल 2008 में पद्म विभूषण सम्मानों से नवाजा।

रतन टाटा को मिल चुकी हैं ये डिग्रियां

अगर शिक्षा के बारे में बात करें तो रतन टाटा को इससे पहले भी कई डिग्रियां मिल चुकी हैं। रतन टाटा को कनाडा के प्रतिष्ठित यॉर्क विश्वविद्यालय से उनके नेतृत्व में नवाचारों को बढ़ावा देने के उनके अभियान और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के लिए डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि प्राप्त की थी। उन्हें 2015 में क्लेम्सन यूनिवर्सिटी द्वारा ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट और 2018 में स्वानसी यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा अभी हाल में यूके की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने भी रतन टाटा को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था।

Source : Jansatta

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