जमुई जिले में एक ऐसा भी गांव है जहां प्राचीन शिव मंदिर में 108 शिवलिंग और देवी दुर्गा का एक मंदिर हुआ करता था. बदलते समय मे कई शिवलिंग और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया, लेकिन आज भी 40 से ज्यादा शिवलिंग हैं. मंदिर परिसर में सैकड़ों की संख्या में प्राचीन मूर्तियां और शिलालेख जहां-तहां पड़ी हुई हैं. इस मंदिर का इतिहास रामायण काल के काक-भुशुंडि आश्रम के अलावा गिद्धौर रियासत से भी जुड़ा है.

 जमुई जिले के ख़ैरा इलाके से देवघर जाने वाली सड़क पर सोनो से पहले एक गांव है कागेश्वर. यह स्थान प्राचीन बाबा कागनाथ या बाबा कागेश्वर नाथ धाम शिव मंदिर के लिए जाना जाता है. यहां कई शिव लिंग छोटे-छोटे मंदिर में स्थित हैं.

 मुगल शासकों ने मंदिर के साथ तोड़ फोड़ कर मूर्ति और शिव लिंग को भी निशाना बनाया था. आज भी इन मंदिर परिसर में खंडित प्रतिमा और दर्जनों की संख्या में शिलापट्ट मौजूद हैं. ग्रामीण बसंत यादव, सुखदेव यादव और मुंशी साव की मानें तो कई मूर्तियां की तो चोरी हो गई, कइयों को जमुई के संग्रहालय में रखा गया है.

जमुई जिले के ख़ैरा इलाके से देवघर जाने वाली सड़क पर सोनो से पहले एक गांव है कागेश्वर. यह स्थान प्राचीन बाबा कागनाथ या बाबा कागेश्वर नाथ धाम शिव मंदिर के लिए जाना जाता है. यहां कई शिव लिंग छोटे-छोटे मंदिर में स्थित हैं.

शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा है. यही नहीं गिद्धौर रियासत के राजा से भी इस मंदिर का संबंध है. मुंगेर गजेटियर में वर्णन है कि गिद्धौर रियासत के राजा वीर विक्रम सिंह के पुत्र सुखदेव सिंह ने यहां 109 मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिसमें एक 108 शिवलिंग और देवी दुर्गा का एक मंदिर था.

 सदियों से यहां पूजा करते आ रहे परिवार के सदस्य पुजारी बासुकी नाथ पांडेय का कहना है कि यह प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है. मान्यता के अनुसार बरनार नदी के किनारे स्थित यह मंदिर उपासना घाट के नाम से भी जाना जाता है. रामायण काल में काक-भुशुंडि का यही निवास स्थल था. भगवान शिव के श्राप से मुक्त होने के लिए काक-भुशुंडी ने उनकी आराधना की थी.

मुगल शासकों ने मंदिर के साथ तोड़ फोड़ कर मूर्ति और शिव लिंग को भी निशाना बनाया था. आज भी इन मंदिर परिसर में खंडित प्रतिमा और दर्जनों की संख्या में शिलापट्ट मौजूद हैं. ग्रामीण बसंत यादव, सुखदेव यादव और मुंशी साव की मानें तो कई मूर्तियां की तो चोरी हो गई, कइयों को जमुई के संग्रहालय में रखा गया है.

मुंगेर गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि बर्दी के राजा वीर विक्रम सिंह ने गिद्धौर रियासत की स्थापना की थी जो भगवान शिव के बड़े भक्त भी थे, बताया जाता है कि गिद्धौर रियासत के राजा ने ही बैद्यनाथ धाम मंदिर का निर्माण भी करवाया था जो आज आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है.

 सदियों से यह गांव आस्था का केंद्र रहा है, जहां सालों भर लोग शिव की आराधना करने पहुंचते हैं. आज इस धरोहर को बचाकर इसे अपनी वास्तविक स्थिति में लाने की आवश्यकता है. कागेश्वर नाथ शिव मंदिर आज भी आस्था का केंद्र है, इसे संरक्षित कर पुराने रूप में लाने की जरूरत है.

सदियों से यहां पूजा करते आ रहे परिवार के सदस्य पुजारी बासुकी नाथ पांडेय का कहना है कि यह प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है. मान्यता के अनुसार बरनार नदी के किनारे स्थित यह मंदिर उपासना घाट के नाम से भी जाना जाता है. रामायण काल में काक-भुशुंडि का यही निवास स्थल था. भगवान शिव के श्राप से मुक्त होने के लिए काक-भुशुंडी ने उनकी आराधना की थी.

मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के चारो तरफ कई शिवलिंग वाला मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे आज भी मौजूद है. गिद्धौर रियासत के राजा ने इस मंदिर को 2 एकड़ 44 डिसमिल जमीन दी थी, लेकिन अधिकांश जमीन पर अब अतिक्रमण है.

इतिहास के जानकार डॉ. रविश कुमार की मानें तो मुगल शासक बख्तियार खिलजी और बाद में पारस पत्थर होने के आरोप में जहांगीर ने गिद्धौर रियासत पर जब आक्रमण किया था तब मुगल सैनिकों ने बाबा कागेश्वर नाथ शिव मंदिर को बहुत नुकसान पहुंचाया था.

सदियों से यह गांव आस्था का केंद्र रहा है, जहां सालों भर लोग शिव की आराधना करने पहुंचते हैं. आज इस धरोहर को बचाकर इसे अपनी वास्तविक स्थिति में लाने की आवश्यकता है. कागेश्वर नाथ शिव मंदिर आज भी आस्था का केंद्र है, इसे संरक्षित कर पुराने रूप में लाने की जरूरत है.

Source : News18

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