सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकारी कर्मचारियों की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. अदालत ने कहा है कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति का पात्र है. कोर्ट का मानना है कि कानून आधारित किसी भी नीति में वंश समेत अन्य आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट्ट और पीएस नरसिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाया. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट के 18 जनवरी 2018 के आदेश को खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता मुकेश कुमार की अनुकंपा नियुक्ति पर योजना के तहत सिर्फ इसलिए विचार करने से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह दूसरी पत्नी का बेटा है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय रेलवे की मौजूदा नीति के अनुसार उसके मामले पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति अनुच्छेद 16 के तहत संवैधानिक गारंटी का अपवाद है लेकिन अनुकंपा नियुक्ति की नीति अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार होनी चाहिए. तीनों जज की बेंच ने कहा कि, अधिकारियों को इस बात की जांच करनी होगी कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कानून के अनुसार अन्य सभी आवश्यकाओं को पूरा करता है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कानून के आधार वाली
अनुकंपा नियुक्ति की नीति में वंशानुक्रम समेत अनुच्छेद 16(2) में वर्णित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. इस संबंध में, वंश को किसी व्यक्ति के पारिवारिक मूल को शामिल करने के लिए समझा जाना चाहिए.

दरअसल 24 फरवरी 2014 को भारतीय रेलवे के एक कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मौत हो गई थी. जिसकी दो पत्नियां थी. याचिकाकर्ता मुकेश कुमार दूसरी पत्नी से पैदा हुआ पुत्र है. पति की मौत के बाद दूसरी पत्नी ने अपने बेटे मुकेश कुमार को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की मांग की थी. लेकिन केंद्र ने इस आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया था कि मुकेश कुमार दूसरी पत्नी का बेटा होने के नाते ऐसी नियुक्ति का हकदार नहीं है.

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