सासाराम. बिहार में शातिर चोरों ने एक एतिहासिक धरोहर को निशाना बनाते हुए हाथ साफ किया है. खबर रोहतास जिला के डेहरी से है जहां डेहरी के एनीकट इलाके से चोरों ने 150 साल पुरानी और विख्यात धूप घड़ी  को क्षतिग्रस्त कर उसके धातु का ब्लेड चुरा लिया. बताया जाता है कि ब्रिटिश काल में 1871 ईस्वी में इसका निर्माण कराया गया था तब से ये संरक्षित था. दूर-दूर से लोग इस ऐतिहासिक धूप घड़ी को देखने आते थे लेकिन रखरखाव एवं सुरक्षा के इंतजाम नहीं होने के कारण चोरों ने धूप घड़ी पर हाथ साफ कर दिया.

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खास बात ये है कि जिस इलाके से चोरी हुई है वहां ज्यादातर पुलिस अधिकारियों के आवासीय क्षेत्र हैं. डीआईजी, एसपी, एएसपी सहित तमाम आला पुलिस अधिकारियों के कार्यालय एवं आवास इसी इलाके में हैं फिर भी चोरों की हिम्मत देखिए की धूप घड़ी को ही क्षतिग्रस्त कर उसे चुरा लिया. ‘सन- वॉच’ का परिसर भी पहले से टूटा हुआ है. स्थानीय प्रशासन ने इसका रखरखाव नहीं किया, जिसका नतीजा हुआ कि चोरों ने इस धूप घड़ी को चुराकर डिहरी की एक पहचान को खत्म कर दिया. स्थानीय लोग इस करतूत से काफी मायूस है. उधर मौके पर पुलिस पहुंच गई है.

डीआईजी, एसपी तथा एएसपी भी रहते हैं इस इलाके में

सबसे बड़ी बात है कि शाहाबाद प्रक्षेत्र के डीआईजी उपेंद्र शर्मा, रोहतास के एसपी आशीष भारती, BMP-2 की कमांडेंट स्वप्ना जी मेश्राम तथा चर्चित आईपीएस ASP डॉ. नवजोत सिमी भी इसी इलाके में रहती हैं. उनका कार्यालय तथा आवास भी आसपास ही हैं लेकिन फिर भी चोरों ने इन आला पुलिस अधिकारियों के रुतबे और धमक की भी मांग नहीं रखी और डिहरी की पहचान कहे जाने वाली ऐतिहासिक धूप घड़ी को क्षतिग्रस्त कर उसका धातु ब्लेड चुरा लिया.

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सोन नहर यांत्रिक कार्यशाला में कार्यरत कामगारों के लिए स्थापित किया गया था धूप घड़ी

19वीं सदी में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने सोन नहर प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से डेहरी में एक यांत्रिक कार्यशाला का संचालन किया था जिसमें काम करने वाले कामगारों के लिए धूप घड़ी बनाई गई थी. यह धूप घड़ी प्रत्येक आधा घंटा के अंतराल पर सही समय दिखाती थी. सूरज की पहली किरण से लेकर सूर्यास्त के अंतिम किरण तक इस घड़ी का उपयोग किया जाता था.

पिछले महीने News18 ने इस सनवॉच की विशेषता को दिखाते हुए प्रमुखता से खबर भी दिखाई थी तथा इसके संरक्षण की आवश्यकता जाहिर की थी. अगर प्रशासन उक्त खबर पर संज्ञान लेती और इसके रखरखाव एवं सुरक्षा की व्यवस्था की जाती, तो आज यह स्थिति नहीं होती. अब इस स्थल पर सिर्फ अवशेष ही बचे हैं.

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