इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और अब गांधी सेतु के दोनों लेन पर सरपट भागेंगी गाड़ियां। करीब छह साल में सेतु के सुपरस्ट्रक्चर को बदल कर इसे नया स्वरुप दिया गया है। गांधी सेतु पश्चिमी लेन का सुपरस्ट्रक्चर बदलकर इसे जून 2020 में चालू कर दिया गया था। अब सात जून से नए पूर्वी लेन पर भी वाहनों का आवागमन शुरु हो जाएगा। दोनों लेन पर निर्बाध रुप से वाहनों का आवागमन शुरू हो जाने के बाद पटना से हाजीपुर का सफर आसान हो जाएगा और करीब छह किलोमीटर की दूरी पंद्रह मिनट में पूरी की जा सकेगी।

छह साल पहले शुरु हुआ था सुपरस्ट्रक्चर बदलने का काम

उत्तर बिहार की लाइफ लाइन कहा जाने वाला, एशिया का सबसे लंबा पुल महात्मा गांधी सेतु पर 1983 से वाहनों का आवागमन शुरु किया गया था। लेकिन उचित रखरखाव नहीं होने के कारण निर्माण के पच्चीस वर्ष होते ही सेतु की स्थिति खराब होने लगी। भारी वाहनों का बेरोकटोक परिचालन और सेतु पर वाहनों का ठहराव होने से इसके स्पैन असर पड़ा और कई स्थानों पर यह काफी जर्जर हो गया।

सेतु के जर्जर कंधों पर भी हर दिन चालीस हजार से अधिक वाहनों का दबाव था। अंतत: इसके पुर्ननिर्माण की योजना बनायी गयी और सेतु के 46 पायों को दुरुस्त पाते हुए इसके ऊपरी सतह का निर्माण कराने की रुपरेखा तैयार की गयी। वर्ष 2016 में सेतु पश्चिमी लेन की परत काटकर इसे स्टील की चादर वाली सुपरस्ट्रक्चर बनाने का काम शुरु किया गया। उस वक्त दो साल में पश्चिमी लेन और अठारह महीने में पूर्वी लेन को तैयार कर आवागमन शुरु करने का लक्ष्य रखा गया था। इस नवनिर्मित सेतु को मार्च 2020 में शुरू किया जाना था लेकिन विभिन्न कारणों से निर्माण में देरी होती गयी और दो साल बाद इसे पूरा किया जा सका।

ट्रैफिक व्यवस्था करनी होगी दुरुस्त

गांधी सेतु के दोनों लेन से वाहनों का परिचालन शुरु होते ही राजधानी में बड़े वाहनों का प्रेशर बढ़ेगा। खासकर जीरोमाइल, पहाड़ी मोड़, धनुकी मोड़ के पास ट्रैफिक व्यवस्था को चौबीसों घंटे दुरुस्त रखना होगा। सेतु से वाहनों का दबाव बढ़ते ही फोरलेन पर जाम की समस्या खड़ी न हो इसके लिए नई व्यव्स्था करनी होगी। बड़े वाहनों के डायवर्ट और ओवरटेक पर नजर रखनी होगी। जिससे कि भीषण जाम से बचा जा सके।

1982 में इंदिरा गांधी ने किया था उद्घाटन

गंगा नदी पर पटना में सबसे पहले महात्मा गांधी सेतु पुल 1982 में बनाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पुल का उद्घाटन किया था। हालांकि इस पुल की स्वीकृति 1969 में भारत सरकार द्वारा दी गई थी। 1972 से 1982 तक पुल निर्माण का कार्य चला था। पुल 10 वर्षों में बनकर तैयार हुआ था। इसपर 87.22 करोड़ की लागत आई थी। पुल में कुल 46 पाया है।

Source : Hindustan

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