सहरसा. बिहार में एक बार फिर से स्वास्थ्य महकमे की सच्चाई को उजागर करती शर्मनाक तस्वीर सामने आई है. मामला सहरसा से जुड़ा है जहां सदर अस्पताल की लापरवाही दिखी है वो भी ऐसी लापरवाही जिससे एक मासूम मरीज की जान भी जा सकती थी. अस्पताल में सांप काटने के बाद इलाज के लिए पहुंचे एक साल के छोटे बच्चे का इलाज मोबाइल फ्लैश की रोशनी में करना पड़ा. छोटे बच्चे को सांप काटने के बाद जब परिजन भागे-भागे सदर अस्पताल पहुंचे तो उसे इमरजेंसी वार्ड में इलाज के लिये लाया गया.

बच्चे को इलाज के लिए तो इमरजेंसी में भर्ती ले लिया गया लेकिन इस दौरान अस्पताल में बिजली नही थी और ना ही जेनरेटर चलाया गया. खास बात तो यह है कि जेनरेटर में डीजल ही नहीं था. लाईन कटने के बाद संविदा पर जेनरेटर कर्मी तेल लाने गया तब तक तकरीबन 45 मिनट तक बच्चे का इलाज मोबाइल के टोर्च की रोशनी के सहारे किया गया लेकिन इस दौरान प्रशासन 45 मिनट तक मुकदर्शक बना रहा.

इस दौरान मोबाईल टोर्च की रोशनी पर बच्चे का इलाज चलता रहा फिर 45 मिनट तक इलाज के बाद जेनरेटर में तेल डालने के लिए कर्मचारी पहुंचा. बच्चे का इलाज कर रहे डॉक्टर की मानें तो बच्चे की हालत सांप काटने से गंभीर थी और उसका इलाज करना जरूरी था इस कारण उन्होंने बिना वक्त गंवाए ही मोबाइल की रोशनी में इलाज शुरू कर दिया.

ऐसे में सवाल यह है कि क्या सदर अस्पताल में टॉर्च की रोशनी में इलाज करना कितना सही है. क्या बिजली गुल होने के बाद जेनरेटर के लिये डीजल लाने जाना कितना उचित है. क्या ऑपरेशन के दौरान बिजली गुल होने के बाद भी टॉरच की रोशनी में ऑपरेशन किया जाता. मामले की जानकारी जब न्यूज 18 के माध्यम से बड़े अधिकारियों तक पहुंची तो सिविल सर्जन अवधेश प्रसाद जांच के लिए सदर अस्पताल पहुंचे. उन्होंने सदर अस्पताल में अनुबंध पर जेनरेटर चला रहे संवेदक से स्पष्टीकरण मांगा है साथ ही संवेदक को काली सूची में डालने डालने की कही बात. उन्होंने इमरजेंसी में आज ही शाम पांच बजे तक इन्वर्टर लगाने का आदेश दिया है.

Source : News18

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