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विकास दिव्यकीर्ति सर ने बताया- कैसे रेप पीड़िता बनी IPS, मिली सबसे ज्यादा खुशी

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देश के चर्चित शिक्षकों में शामिल डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति ने अब माता-पिता की कोचिंग की भी वकालत कर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पैरेंट्स बनने के साथ ही उनकी कोचिंग शुरू हो जानी चाहिए। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपने शिक्षक जीवन से जुड़ा एक भावनात्मक किस्सा भी साझा किया, जहां मेहनत के दम पर बलात्कार का शिकार हुए युवती ने IPS ऑफिसर बनने तक का सफर तय किया।

डॉक्टर दिव्यकीर्ति ने कहा, ‘पैरेंट्स की कोचिंग तो उसी दिन शुरू हो जानी चाहिए, जिस दिन वो पैरेंट्स बनते हैं। इस देश में बच्चों की कोचिंग से ज्यादा जरूरी है पैरेंट्स की कोचिंग करना। मैं भी एक पैरेंट हूं और मैं भी इस बात को समझता हूं। एक अजीब सा भय बच्चों के मन में रहता है।’ ABP न्यूज के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘मैं बच्चों का भविष्य नहीं बनाता। बच्चें ही हैं, जो कुछ किस्मत के साथ कड़ी मेहनत करते हैं और IAS अफसर बनते हैं।’

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कैसे रेप पीड़िता बनी अधिकारी

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने बताया, ‘मुझसे कई लोगों ने पूछा कि इतने विद्यार्थियों को पढ़ाने के बाद सबसे अच्छा अनुभव कौन सा रहा।’ इसे लेकर उन्होंने मंच से 15-17 साल पहले का एक उदाहरण साझा किया, जब बलात्कार का शिकार हुआ युवती मुलाकात करने पहुंची थी।

उन्होंने कहा, ‘एक लड़की मुझसे मिलने आई, जिसकी उम्र 21-22 साल रही होगी उस समय और उसने रोते हुए मुझसे एक बात कही कि मैं गांव में थी। वहां मेरे साथ रेप हुआ। और जिस तरह से उसने बताया वह बहुत घबराने वाली बात थी। तो मैंने कहा कि फिर आपने पुलिस में शिकायत तो की होगी, अपने माता-पिता से बात की होगी। उसने कहा मैं यह बात दुनिया में किसी से भी कर सकती हूं। आपसे भी कर सकती हूं, लेकिन अपने माता-पिता से नहीं कर सकती। क्योंकि जब मैं छोटी थी, कुछ रिश्तेदारों ने ऐसी हरकत की थी। जब मैंने अपनी मां को बोला, तो मां ने डांटकर भगा दिया।’

उन्होंने आगे कहा, ‘और उस लड़की के मन में एक ही सपना था कि उसे नौकरी नहीं चाहिए। वह कहती थी कि मैं जिंदगी जी लूंगी। मेरा मन करता है कि मैं पुलिस बनूं और कम से कम अपने इलाके में किसी और बच्ची के साथ ये नहीं होने दूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे जीवन का सबसे संतुष्ट करने वाला अनुभव वो था जब वह तीन-चार साल की मेहनत के बाद IPS बनी। आज वह IPS है।’

Source : Hindustan

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डॉक्टर से आईपीएस बने बिहार के अभिषेक पल्लव की सक्सेस स्टोरी

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जब हम पुलिस अधिकारी की बात करते है तो आमतौर पर उनकी सख्त छवि उभर कर सामने आती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे पुलिस अधिकारी के बारे में बताएंगे जो बेहद सरल और सहज है। हम आज आईपीएस अभिषेक पल्लव के बारे में जानेंगे जिन्होंने बस्तर और दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों का दिल जीत लिया। कई नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया। अभिषेक पल्लव छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के एसपी है। वो एक डॉक्टर से आईपीएस अधिकारी बने हैं। आइए जानते है उनके सफर की सक्सेस स्टोरी।

Here's How One Doctor-Turned-IPS Officer is Using Kindness to Counter  Naxalism

आईपीएस ऑफिसर अभिषेक पल्लव मूल रूप से बिहार के बेगुसराय के रहने वाले हैं। 2 सितंबर 1982 को जन्में अभिषेक ने 2009 में AIIMS में एमडी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने 2012 में यूपीएससी क्रैक किया। अभिषेक के पिता आर्मी में थे, जिस वजह से उनकी स्कूलिंग आर्मी स्कूल में हुई। वो शुरुआत से ही आईपीएस बनना चाहते थे।

बता दें कि अभिषेक की पहली पोस्टिंग छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एडिशनल एसपी एंटी नक्सल ऑपरेशन के तौर पर हुई थी। वहां वो तीन साल रहे, इसके बाद कोंडागांव के एसपी बने। बाद में दंतेवाड़ा के एसपी पोस्ट पर पोस्टिंग हुई।

मालूम हो कि नक्सल प्रभावित इलाकों में अभियान चलाने के कारण उन्हें राष्ट्रपति के हाथों वीरता पुरस्कार भी मिल चुका है। अभिषेक जहां एक मनोचिकित्सक है, वहीं उनकी पत्नी यशा पल्लव एक स्किन स्पेशलिस्ट है। दोनों नक्सल प्रभावित इलाकों में अक्सर मेडिकल कैंप लगाते रहते है।

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मर्डर के बाद शव सड़ने तक शारिरिक संबंध, कटे सिर शोकेस पर रखने का शौक; डरावनी है इस सीरियल किलर की कहानी

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आपने निठारी के शैतान सुरेंद्र कोली के बारे में सुना होगा। यह उससे भी भयानक और खूंखार था। इसकी शक्ल देखकर इसकी हैवानियत और शैतानी सोच का अंदाजा लगाना मुश्किल है। महज 23 साल की उम्र में इसने पहली वारदात को अंजाम दिया। अमेरिका के इस कुख्यात सीरियल किलर का नाम- थियोडोर रॉबर्ट बंडी है। इसने 30 से अधिक महिलाओं को अपना शिकार बनाया था। इस किलर को टेड बंडी के नाम से भी जाना जाता था। 80 के दशक में महिलाओं के दिल में इसका खौफ था। यह सुंदर महिलाओं से फ्लर्ट करता फिर मौका पाकर रेप के बाद मर्डर और फिर कई दिनों तक शव के साथ शारिरिक संबंध बनाना इसका शौक था। निशानी के तौर पर यह सिर को धड़ से अलग करके शो केस में सजाकर भी रखता था। शव से संबंध बनाने से पहले शवों पर मेकअप भी करता था। दो बार से जेल से फरार हुए इस साइको किलर को कोर्ट ने इलेक्ट्रिक चेयर पर बैठाकर करंट से मौत की सजा सुनाई थी। जब ये मरा तो जश्न के मारे लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े थे। जानते हैं इस सीरियल किलर की कहानी…

Her Murder Was Tied to Ted Bundy. Then the Case Went Cold.

मानवीय इतिहास में कई खूंखार सीरियल किलर हुए हैं। इनमें में एक था- टेड बंडी उर्फ थियोडोर रॉबर्ट बंडी। अमेरिका के इस कुख्यात सीरियल किलर थियोडोर रॉबर्ट बंडी का जन्म 24 नवंबर 1946 को बर्लिंगटन में हुआ था। यह पहले महिला या लड़की का अपहरण करता था। फिर उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था और फिर जान से मार देता था। इस साइको किलर के सनकीपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह शवों के साथ कई दिनों तक शारिरिक संबंध बनाता था, जब तक शव सड़ न जाए या कोई जानवर उसे अपना शिकार न बना दे।

महिलाओं से फ्लर्टिंग भी

80 के दशक में इसका इतना खौफ था कि इसके नाम से भी लोग डरते थे। रिपोर्ट बताती है कि इसके निशाने पर अक्सर महिलाएं ही होती थी और इसने 30 से ज्यादा महिलाओं को अपना शिकार बनाया था। 1971 से पहले इसके अपराध का कोई रिकॉर्ड नहीं था लेकिन, 1974 से 1978 तक इसने अमेरिका के कई शहरों में संगीन वारदातों को अंजाम दिया था। यह दिखने में काफी हैंडसम था और इसलिए अक्सर महिलाएं इसके चंगुल में फंस जाती थी। यह उनसे फ्लर्ट करता था और फिर अपने मंसूबों को अंजाम दिया।

कटे सिर शोकेस पर रखने का शौक

टेड बंडी इस कदर साइको था कि उसने अपने घर में 12 से अधिक महिलाओं के कटे हुए सिर शोकेस में इस कदर संभाल कर रखे थे, मानो कोई ट्रॉफी हो। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि उसने पहली वारदात की कोशिश 23 साल की उम्र में 1969 को की। उसने महिला का अपहरण का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो पाया। यह बात उसने अपने एक दोस्त निल्सन को बताई थी। हालांकि पुलिस अधिकारी ऑफ रिकॉर्ड बताते हैं कि उसने 1969 में अटलांटिक सिटी में दो महिलाओं के साथ दरिंदगी की और फिर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी। यह उसका पहला क्राइम था। लेकिन, इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं मिलता है।

इसक सीरियल किलर की वारदातों का जिक्र करें तो एक बार इसने एक महिला के घर में चोर की तरह एंट्री ली। वह सो रही थी। पहले सिर पर हमला कर बेहोश किया। फिर लोहे की छड़ी से ऐसी दरिंदगी दिखाई कि वह महिला हमेशा के लिए विकलांग हो गई। इसने 10 से अधिक महिलाओं के घर पर घुसकर वारदातों को अंजाम दिया था।

मौत पर जेल के बाहर फोड़े गए पटाखे

टेड बंडी को पहली बार 16 अगस्त 1975 को गिरफ्तार किया था। लेकिन 7 जून 1977 को वह जेल से भाग निकला। 13 जून को फिर गिरफ्तार हुआ लेकिन, 30 दिसंबर 1977 को फिर फरार हो गया। 15 फरवरी को इसे फिर पकड़ा गया और जनवरी 1989 को इसे मौत की सजा सुनाई गई। इसे फ्लोरिडा के जेल में सवेरे 7 बजे इलेक्ट्रिक चेयर पर बैठाकर करंट देकर मौत दी गई। इसकी मौत पर जेल के बाहर जश्न में पटाखे फोड़े गए थे।

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ज्ञान की बात: आखिर जींस के पैंट में क्यों बनी होती है एक छोटी पॉकेट

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दुनिया में जींस को अमेरिका ने इंट्रोड्यूस करवाया. इस देश से होते हुए जींस दुनिया के सारे कोनों में पहुंच गया. जिस जींस को आज फैशन स्टेटमेंट माना जाता है, असल में उसका निर्माण मजदूरों के लिए किया गया था. जींस बनाने के पीछे कारण था मजदूरों के कपड़े ज्यादा गंदे ना हों. जी हां, बार-बार पैंट को धोना ना पड़े इस कारण जींस बनाई गई थी. आज के समय में हर कोई जीन्स पहनता है. इसके पॉकेट के अंदर के हिस्से में एक छोटा पॉकेट बना रहता है. इसे हम सिक्के रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन आपको बता दें कि असल में ये किसी और चीज के लिए बनाया गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

जींस के पॉकेट के अंदर के एरिया में एक छोटा सा स्पेस बनाया जाता है. आमतौर पर हम इसमें सिक्के डाल देते हैं. लेकिन दाएं तरफ बनी का असली उपयोग किसी और कारण से होता है. दरअसल,इसे सिक्के नहीं, बल्कि छोटी घड़ी रखने के लिए यूज किया जाता है. दरअसल,जींस का इतिहास काफी पुराना है. शुरुआत में तो इसे मजदूरों के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में ये फैशन स्टेटमेंट बन गया. 18वीं सदी में छोटी चेन वाली घड़ियां चलती थी. उसी घड़ी को रखने के लिए पॉकेट में ये स्पेस बनाया गया था. इस स्पेस को बनाना लेवी स्ट्रॉस नाम की कंपनी ने शुरू किया था. यही अब लेविस बन चुका है.

Knowledge: आखिर जींस में छोटी पॉकेट्स और बटन क्यों होते हैं? बेहद रोचक है इसकी वजह

जींस के दाएं तरफ मौजूद इस स्पेस को आधिकारिक तौर पर वॉच पॉकेट कहा जाता है. पुराने समय में काऊब्वॉयज़ इसके अंदर चेन वाली घड़ी रखते थे. लेकिन बाद में जब इस घड़ी का चलन कम हुआ तो लोगों को लगने लगा कि असल में ये सिक्के रखने के लिए बनाए जाते हैं.इस स्पेस में घड़ी रखने से इसके टूटने-फूटने के चांसेस कम होते थे. इसका इस्तेमाल हर मजदुर करता था. बाद में इस वॉच पॉकेट को लोग इतना पसंद करने लगे कि अब भी इसे दायीं तरफ बनाया जाता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

(मुजफ्फरपुर नाउ के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

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