क्या बोचहां विधानसभा उपचुनाव का परिणाम आने वाले समय में बिहार की राजनीति की दशा और दिशा को तय करने वाला है. यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने माय वाय समीकरण से आगे बढ़ कर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को A टू Z की पार्टी बनाने के लिए बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. अगर तेजस्वी का यह दांव चल गया तो आने वाले समय में बिहार में एनडीए गठबंधन की परेशानी बढ़ सकती है.
दरअसल बोचहां उपचुनाव मात्र एक उपचुनाव भर नहीं है. इसका परिणाम बहुत कुछ तय करने वाला है. बीजेपी जो यह दावा करती है कि विधायकों की संख्या के लिहाज से वो बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, और उसका जनाधार तमाम जातियों में है. ऐसे में उसके लिए यह उपचुनाव अग्निपरीक्षा जैसी है क्योंकि बीजेपी ने पिछले दिनों मुकेश सहनी को एनडीए गठबंधन से हटा दिया है जिसके बाद मुकेश सहनी ने भी बोचहां में अपने उम्मीदवार उतार कर एनडीए की अति पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. इससे मुकेश सहनी की सहनी वोटों पर पकड़ है या नहीं यह साफ हो जाएगा. साथ ही यह भी स्पष्ट होगा कि एनडीए की मजबूत वोट बैंक मानी जाने वाली अति पिछड़ी जाति के वोटर अभी भी उसके साथ है या नहीं.
बीजेपी के सामने समस्या सिर्फ सहनी वोटर की ही नहीं है. तेजस्वी यादव ने बोचहां में जो उम्मीदवार उतारा है उसकी जीत-हार बहुत कुछ MY समीकरण के साथ साथ पासवान वोटर, सहनी वोटर और सवर्ण खास कर भूमिहार वोटरों पर निर्भर करता है. आरजेडी को उम्मीद है कि बिहार विधान परिषद चुनाव में जिस तरह से आरजेडी के भूमिहार उम्मीदवार जीते हैं उससे भूमिहार वोटरों का झुकाव उसकी तरफ हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो कल तक भूमिहार वोटर जो बीजेपी के सबसे मजबूत वोटर माने जाते थे उसके बहाने आरजेडी एक बड़ा मैसेज देने में सफल हो जाएगा कि अब वो सिर्फ MY समीकरण की पार्टी नहीं है, बल्कि A टू Z की पार्टी बन चुकी है.
वहीं, जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के लिए भले ही बोचहां उपचुनाव परिणाम का कोई खास महत्व ना हो. लेकिन चुनाव परिणाम बीजेपी और जेडीयू के संबंधों पर भी अंदर ही अंदर असर डाल सकता है. क्योंकि सूत्र बताते हैं कि बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उपचुनाव में प्रचार करवाया था. लेकिन जेडीयू नेताओं को चुनाव प्रचार में कोई खास तवज्जो नहीं दी जिसकी चर्चा जेडीयू के नेता अंदर ही अंदर कर रहे हैं.
Source : News18