मुजफ्फरपुर – अमरेंद्र तिवारी । समस्तीपुर के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय तरल गुड़ के उत्पादन पर काम कर रहा है। इसे एक साल तक सामान्य तापमान और तरीके से रखा जा सकेगा। इसके स्वाद में कोई अंतर नहीं होता है। इसका इस्तेमाल किसी भी पकवान को बनाने या दूध में आसानी से घोलने में किया जा सकता है। अलग-अलग फ्लेवर और हर्बल बनाने के लिए इसमें सहजन, गिलोय, अदरक, तुलसी, दीलचीनी भी मिलाई जा रही है। यह शरीर के ऊर्जा स्तर को बढ़ाता है।

इस तरह करते निर्माण

ईख अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. अनिल कुमार सिंह की देखरेख में इंजीनियर अनुपम अमिताभ संचालन कर रहे हैं। वह बताते हैं कि तरल गुड़ बनाने की शुरुआती प्रक्रिया ठोस गुड़ जैसी ही है। इसमें तापमान की अहम भूमिका होती है। गन्ने से जूस निकालने के बाद उसे प्रसंस्करण यूनिट में भेजा जाता है। वहां से क्लीन टैंक में जाता है। जूस को 102-103 डिग्री सेल्सियस तापमान पर उबालने के बाद दूसरे टैंक में स्टोर किया जाता है। वहां 12 घंटे तक छोड़ दिया जाता है। इस तापमान पर गुड़ तरल रूप में ही रहता है। इस रूप में एक साल तक रह सकता है। इंजीनियर अनुपम के अनुसार अगर रस का तापमान 118-120 डिग्री सेल्सियस हो जाए तो वह ठोस हो जाता है। इसलिए तरल गुड़ के लिए 102-103 डिग्री सेल्सियस तापमान महत्वपूर्ण होता है। इसे बनाने में 35 से 40 रुपये प्रति लीटर खर्च आता है, जबकि विश्वविद्यालय स्तर पर 80 रुपये प्रति लीटर बेचा जा रहा है।

अभी दो जगह काम कर रही यूनिट

प्रयोग के तौर पर कृषि विज्ञान केंद्र पीपराकोठी (मोतिहारी) तथा विश्वविद्यालय परिसर में दो यूनिटें काम कर रही हैं। दोनों जगह किसान अपना गन्ना लाकर उत्पाद तैयार करा रहे हैं। प्रसंस्करण के लिए प्रति लीटर 10 रुपये के हिसाब से शुल्क लिया जाता है। इनके अलावा मधुबनी, पश्चिम चंपारण और समस्तीपुर के किसान संपर्क में हैं। विश्वविद्यालय में प्रतिदिन 25 से 30 लोग विजिट कर जानकारी ले रहे हैं। विश्वविद्यालय स्तर से अब तक 150 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

25 लाख की लागत

अनुपम बताते हैं कि एक यूनिट तैयार करने में 25 लाख की लागत आती है। इससे प्रतिदिन तीन से चार टन तरल गुड़ तैयार किया जा सकता है। निदेशक डा. अनिल का कहना है कि विवि से जुड़े कृषि विज्ञान केंद्रों में माडल के रूप में एक-एक यूनिट लगाने की योजना है। इस उत्पाद को खादी माल व बिक्री केंद्र के माध्यम से भी बेचा जाएगा। कुलपति डा. आरसी श्रीवास्तव ने बताया कि तरल गुड़ का निर्माण एक बेहतर शोध है। इसके विस्तार के लिए गन्ना उत्पादक किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

Source : Dainik Jagran

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